चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुड़ी(विजय पताका) पड़वा
नवरात्र का प्रारम्भ ही हिन्दू नववर्ष का भी प्रारम्भ होता है । मान्यता है की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि का आरंभ हुआ था । इस समय प्रकृति का सुन्दर्य और सकारात्मक ऊर्जा दोनों ही बहुत रमणीय होते हैं। ये ऊर्जा मानो हमें सक्रिय होने का सन्देश देती है । हिन्दू नव वर्ष या नव संवत्सर का प्रारम्भ हो रहा है । इसे विक्रम संवत भी कहा जाता है । ऐसी मान्यता है की राजा विक्रमादित्य ने इसकी शुरुआत की थी ।
पौराणिक ग्रंथों की मान्यता है कि इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी । ब्रह्मपुराण में लिखा है
शुक्ल पक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति ||
अर्थात् ब्रह्मा ने सृष्टि कि रचना चैत्र मास के प्रथम दिन प्रथम सुर्योदय होने पर की | इस दिन वतावरण मे उष्मा का प्रवाह तीव्र होता है | इस ऊर्जा प्रवाह के प्रभाव से प्रत्येक जीव मात्र,वनस्पतियाँ तथा पुष्पों में भी नई ऊर्जा गतिमान होती है।ऐसी मान्यता है कि शालिवाहन नाम के एक कुम्हार के लड़के ने मिटटी के सैनिकों की सेना बनाई और उसमें प्राण फूंक दिए और इस सेना की मदद से शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया । इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारम्भ हुआ । कई लोगों की मान्यता है की इसी दिन श्रीराम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी । बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर- घर में उत्सव मनाकर ध्वज(गुड़ियाँ)फहराई । इसी लिए इसे गुड़ी पड़वा के नाम से भी जाना जाता है ।
दुर्गा शक्ति का पर्याय है और हर किसी को शक्ति चाहिए । किसी को प्रेम की शक्ति ,किसी को ज्ञान की शक्ति ,किसी को सत्य की शक्ति और किसी को भक्ति की शक्ति चहिये। देवी दुर्गा के स्वरूप में हमें इन सभी शक्तियों का आभास होता है । हममें भी सभी शक्तियाँ अन्तर्निहित है किन्तु यदि इन शक्तियों के होते हुए भी जब तक हम मानसिक रूप से उसे स्वीकार नहीं करते तब तक समस्त शक्तियाँ हमारे लिए व्यर्थ हैं । नवरात्र में माँ दुर्गा की आराधना का यही अर्थ है कि हम अपने भीतर की शक्ति को पहचानें और उसे सही दिशा में कार्यान्वित करें । इस समय प्रकृति नई ऊर्जा से सराबोर होती है । प्राणियों में भी यह ऊर्जा स्फूर्ति ,उल्लास और क्रियाशीलता बनकर परिलक्षित होती है । इस शक्ति का उपयोग हमें सकारात्मक और सृजनात्मक कार्यों में करना चाहिए न कि नकारात्मक और विध्वंशक कार्यों में।
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