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गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

वैदिक साहित्य

                                                       वैदिक साहित्य
                             सत्याहिंसागुणैः श्रेष्ठा ,विश्वबन्धुत्वशिक्षिका । 
                            विश्वशान्तिसुखाधात्री ,भारतीया हि संस्कृतिः ॥ (कपिलस्य)
समाज और साहित्य का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है । साहित्य का निर्माण समाज में और समाज के लिए ही होता है । इसी लिए किसी भी साहित्य के लिए एक समाज की पूर्वस्थिति होती है जहाँ वह साहित्य विकसित होता है । जहाँ साहित्य है वहाँ एक शिष्ट समाज होगा ,यह एक सुनिश्चित सिद्धांत है । किन्तु जहाँ समाज है वहाँ साहित्य भी होगा यह आवश्यक नहीं है । प्राचीन भारतीय समाज की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं जिनके कारण विश्व की अन्य सभ्यताओं एवं संस्कृतियों के साहित्य की अपेक्षा उसका साहित्य अधिक मूल रूप में आज भी सुरक्षित है 
 और उसका स्वरूप भी अत्यंत स्पष्ट है । भारतीय साहित्य का प्राचीनतम रूप लिखित में था या नहीं था इस विषय में विद्वानों में बहुत मतभेद हैं । प्राचीन भारतीय साहित्य के सृजन तथा विकास में मौखिक परम्परा का अपना एक विशेष महत्व है । उस समय जो भी साहित्य सृष्ट हुआ ,उसका संरक्षण प्राचीन भारतीयों ने मौखिक रूप से श्रुति परम्परा के द्वारा किया । प्रत्येक प्राणी अपनी ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा विषयों के साक्षात्कार के अनन्तर आवश्यकतानुसार विभिन्न जीवन व्यवहार के लिए कर्मेन्द्रियों का प्रयोग  करता है । इस इन्द्रिय प्रयोग के अवसर पर सुख और दुख की अनुभूति जीवन व्यवहार की शिक्षा ग्रहण करना प्रत्येक प्राणी का स्वभाव है । हम न केवल अपने निजी अनुभवों से ही शिक्षा ग्रहण करते हैं अपितु पूर्वजों के अनुभवों से अधिक सीखते हैं । पूर्वजों के अनुभव साहित्य सम्पदा के रूप में  हमें उपलब्ध हैं । जिस साहित्य भण्डार में शिक्षा का वैभव समाहित है ,उसका सर्वप्रथम महनीय रत्न ' वेद ' के  नाम से विख्यात है । पिता - पुत्र ,गुरु - शिष्य - परम्परा में तद्युगीन साहित्य का संरक्षण तथा अग्रेसारण होता रहा है ऋग्वेद में एक मण्डूक की ध्वनि सुनकर दूसरे मण्डूक द्वारा शब्द करने की उपमा , शिष्य द्वारा शिक्षक के शब्द का अनुकरण करने से जो दी गई है वह गुरु - शिष्य - परम्परा से साहित्याध्ययन की ओर संकेत करती है । प्राचीन भारतीय समाज की इसी अद्भुत शिक्षा पद्धति का परिणाम है कि विश्व की अन्य सभ्यताओं का साहित्य जहाँ प्राकृतिक तथा राजनीतिक कारणों से नष्ट हो गया , वहीं इस प्रकार की अनेक आपदाओं से ग्रस्त होने पर भी हमारा साहित्य सुरक्षित रहा ,लुप्त नहीं हुआ । आज हमें वह जिस रूप में उपलब्ध है वह अत्यंत विशाल है । इस विशाल साहित्य को देखकर हम अपने समाज तथा संस्कृति की उदात्तता का अनुमान लगा सकते हैं जहाँ इतने उदात्त तथा विशाल साहित्य का प्रणयन हुआ ।