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सोमवार, 25 अगस्त 2014

मनु स्मृति में जीव हत्या एवं मांस भक्षण

योऽहिंसकानि भूतानि हिनस्त्यात्मसुखेच्छया |
स जीवंश्च मृतश्चैव न क्वचित्सुखमेधते ||
यो बन्धनवधक्लेशान्प्राणीनां न चिकीर्षति |
स सर्वस्य हितप्रेप्सुः सुखमत्यन्तमश्नुते || (मनुस्मृति ५.२३ )

अर्थात् शास्त्रों में लिखा है कि पशुओं  की या जीवों की हत्या करने वाला
पापी होता है तथा उसे इसका फल अवश्य ही मिलता है |जो व्यक्ति अपने सुख की
इच्छा से अहिंसक जीवों को मारता है ,वह इस जीवन में तथा जन्मान्तर में कहीं
 भी सुख नहीं पाता और जो जीवों को बांधने - मारने या क्लेश देने की इच्छा
नहीं करता वह जीवों का हित चाहने वाला अत्यन्त सुख पाता है | अर्थात जीवों
की हिंसा न करने वाला ,अच्छे फल प्राप्त करता है तथा जीवों की हिंसा केवल
अपने हित के लिये करने वाला व्यक्ति ,सदा ही दुःख भोगता है |
 यद्धयायति यत्कुरुते धृतिं बध्नाति यत्र च |
तदवाप्नोत्ययत्नेन यो हिनस्ति न किंचन ||
नाकृत्वा प्राणीनां हिंसां मांस मुत्पद्यते क्वचित् |
न च प्राणिवधः स्वर्ग्यस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत् ||( ५.२४)
अर्थात् ऋषि बताते हैं कि मांस खाना कोई अच्छा गुण नहीं  होता ,अतः
ब्राह्मण को मांस नहीं खाना चाहिये |वह ब्राह्मण तो बिल्कुल मांस न खाये
,जो कि वेदों का अध्ययन जानता हो |ऋषि कहते हैं कि किसी जीव को दुःख नहीं
देता ,वह जिस धर्म को भी मन से चाहता है ,जो कर्म करता है ,जिस पदार्थ को
चाहता है वह उसे अनायास ही प्राप्त होता है |जीवों की हिंसा किये बिना मांस
 उत्पन्न नहीं हो सकता |पशुओं का वध करने वाला कभी स्वर्ग को प्राप्त नहीं
करता ,अतः व्यक्ति को मांस खाना ही छोड. देना चाहिये |अर्थात मांस न खाने
वाला व्यक्ति कभी भी पशु की हिंसा नहीं करेगा ,अतः जो व्यक्ति पशुओं को
नुकसान नहीं पहुँचाता ,वह जीवन में सभी सुख भोगता है |
समुत्पत्तिं च मांसस्य वधबन्धौ च देहिनाम् |
प्रसमीक्ष्य निवर्तेत सर्वमांसस्य भक्षणात् |
न भक्षयति यो मांसं विधिं हित्वा पिशाचवत् |
सलोके प्रियतां याति व्याधिभिश्च न पीड्यते || ( ५.२५)              
अर्थात् ऋषि कहते हैं कि मांस न खाने वाला व्यक्ति सदा ही सुख भोगता है अतः
 व्यक्ति को मांस की उत्पत्ति को जानकर तथा जीवों के वध बन्धन को अच्छी तरह
 समझ कर सब प्रकार का मांस - भक्षण त्याग देना चाहिये |जो व्यक्ति पशु
हिंसा को छोड.कर ,पिशाच की तरह मांस नहीं खाता वह बहुत ही मधुर मन का
व्यक्ति होता है तथा संसार में सभी का प्रिय होता है |अच्छे कर्मों के कारण
 ऐसे व्यक्ति को कोई भी रोग नहीं होता |
अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी |
संसकर्ता  चोपहर्ता च खादकश्चेतिघातकाः ||
स्वमासं परमांसेन यो वर्धयितुमिच्छति |
 अनभ्यर्च्य पितृन्देवांस्ततोऽन्यो  नास्त्यपुण्यकृत || (५.२६)
ऋषि बताते हैं कि किसी भी प्राणी  की हत्या सबसे बड़ा पाप है |जो यह पाप करता है उसे इसका फल अवश्य ही मिलता है |जो व्यक्ति पशु या जीव की हत्या या वध की आज्ञा देता है ,तथा उसका खण्ड खण्ड करने वाला ,उसे मारणे वाला उसे मारकर बेचने वाला ,उसे खरीदने वाला ,उसे पकाने वाला ,उसे परोसने वाला उसे खाने वाला -ये सभी व्यक्ति घातक माने जाते हैं |जो व्यक्ति देवता और पितरों का पूजन किये बिना ही दूसरे जीवों कसा मांस खाते हैं ,तथा स्वयं अपनी सेहत बनाते हैं उससे बढ़ कर पापी दूसरा नहीम् होता है ,अतः पशुओं को मारणे की आज्ञा देने वाले से लेकर उसे पकाकर खाने वाले तक सभी व्यक्ति पापी होते हैं ,वे सभी लोग पशु हिंसा के पाप में शामिल होते हैं |
वर्षे वर्षेऽश्वमेधेन यो यजेत शतं समाः |
मांसानि च न खादेद्यस्तयोः पुण्यफलं समम् |
फलमूलाशनर्मेध्यैर्मुन्यन्नानां च भोजनैः |
न तत्फलवाप्नोति यन्मांसपरिवर्जनात् ||  ( ५.२७ )
ऋषियों के अनुसार ,वह व्यक्ति जो मांस बिल्कुल भी नहीं खाता और दूसरा वह जो
 प्रत्येक सौ वर्ष तक अश्वमेघ यज्ञ करता है ,यह  दोनों ही बराबर समझे जाते
हैं ,दोनों का ही पुण्यफल बराबर होता है |फल -फूल और मुनियों के हविष्यान्न
 खाने से वह फल प्राप्त नहीं होता है ,जो केवल मांस छोड. देने से होता है
,अतः मांस न खाने वाला व्यक्ति बहुत ही पुण्य प्राप्त करता है |
मांस भक्षयिताऽमुत्र यस्य मांसमिहाद्म्यहम् |
एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः||
न मांसभक्षणे दोषो न मद्ये न च मैथुने |
प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला ||  ( ५.२८ )
ऋषियों के अनुसार जो व्यक्ति मांस खाता है ,उसे इसका फल अवश्य मिलता है |महान पण्डित कहते हैं कि जो व्यक्ति जिसका मांस खाता है ,वह परलोक में उस व्यक्ति को अवश्य ही खायेगा ,यही मांस का मांसत्व होता है | ऋषि कहते हैं कि मांस खाने ,मद्य पीने ,और स्त्री-प्रसङ्ग करने में दोष नहीं है क्योंकि प्राणियों की प्रवृत्ति ही ऎसी होती है , परन्तु उससे निवृत्त होना महाफलदायी होता है |अतः इनमें कोई पाप नहीं है ,परन्तु नियमों के विरुद्ध जाकर इन्हें करना पाप है |

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