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रविवार, 17 अगस्त 2014

श्री कृष्णजन्म स्तुति

    श्री कृष्णावतार प्रार्थना
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    दोहा - सुर समूह बिनती करि पहुंचे निज निज धाम |
    जग निवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक विश्राम ||

अर्थात् देवताओं के समूह विनती करके अपने-अपने लोक जा पहुंचे | समस्त लोकों को शान्ति देने वाले जगदाधार प्रभु प्रकट हुए |


छन्द -भये प्रकट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी |
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ||
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी |
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी ||
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि विधि करौं अनंता |
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ||
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावंहि श्रुति संता |
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयंहु प्रकट श्रीकंता ||
ब्रह्माण्ड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै |
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै || 
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै |
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ||
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा |
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ||
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा |
यह चरित जे गावहिं हरि पद पावहिं ते न परहिं भवकूपा ||
दोहा -बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार |
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार || 

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