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मंगलवार, 12 अगस्त 2014

श्री हनुमान की उपासना कब करनी चाहिये ?

मानस -शङ्का - समाधान 
 
श्री हनुमान की उपासना कब करनी चाहिये ?
शङ्का --सर्वसाधारण और अधिकतर महात्माओं के मुखारविन्द से सुनने में आता हैकी 'सवा पहर दिन चढ जाने से पहले श्री हनुमानजी का नाम जप तथा हनुमानचालीसा का पाठ नहीं करना चाहिये |'क्या यह बात यथार्थ है ?
समाधान --आज तक इस दास को न तो किसी ग्रन्थ में एसा कहीं प्रमाण मिला है ,न अभी तक किसी महात्मा के ही मुखारविन्दसे सुनने को मिला है कि उपासक को किसी उपास्यदेव के स्त्रोतों का पाठ या उसके नाम का जप इत्यादि प्रातः काल सवापहर तक न कर ,उसके बाद करनी चाहिये | बल्कि हर जगह इसी बात का प्रमाण मिलता है कि सदा तथा निरन्तर तैलधारावत् अजस्त्र ,अखण्ड भजन -स्मरण करना चाहिये| यथा --

'रसना निसि बासर राम रटौ !'(कवित्त -रामायण )
''सदा राम जपु ,राम जपु|'
'जपहि नाम रघुनाथ को चरचा दूसरी न चालु |'
'तुलसी तू मेरे कहे रट राम नाम दिन राति |' ( विनय -पत्रिका )
इसी प्रकार श्री हनुमान् के सम्बन्ध में भी सदा - सर्वदा भजन करने का ही प्रमाण मिलता है |यथा --
मर्कटाधीश ,मृगराजविक्रम ,मुद-मङ्गलमय ,कपाली |
+ + + + + +
सिद्ध -सुर वृन्द -योगीन्द्र -सेवित सदा ,
दास तुलसी प्रणत भय तमारी || (विनय पत्रिका पद २६)
पुनः ---
मङ्गलागार ,संसारभारा पहर वानराकारविग्रह पुरारी |
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राम संभ्राज सोभा -सहित सर्वदा,
तुलसिमानस -रामपुर -बिहारी |(विनय पत्रिका पद २७)
कदाचित् किसी को हनुमान के इस वचन का ध्यान आ गया हो कि --
'प्रात लेइ जो नाम हमारा |तेहि दिन ताहि न मिलै आहारा |'
परन्तु इसका भावार्थ लेना चहिये |यहाँ 'हमारा ' शब्द का सम्बन्ध ऊपर की चौपाई के कपिकुल अर्थात् वानर -योनि से है,न कि अपने शरीर
(श्रीहनुमान्-विग्रह ) से है | वहाँ आप कहते हैं --

'कहहु कवन मैं परम कुलीना | कपि चंचल सबहीं बिधि हीना ||'
अर्थात् विभीषणजी ! आप अपने को राक्षसकुल का मानकर भय माता करें |बताइये ,मैं ही कौन -से बडे. श्रेष्ठ कुल का हूँ |वानरयोनि तो चञ्चल और पशु होने से सभी प्रकार से हीन है |हमारे कुल (वानर ) का अगर कोई प्रातः काल नाम ले ले तो उस दिन उसे आहार का ही योग नहीं लगता -श्री हनुमान की उपासना कब करनी चाहिये ?
'अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर |
कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर |'

-ऐसे अधम कुल का मैं हूँ,किन्तु सखा ! सुनिये ' मुझ पर भी श्रीराम ने कृपा की है |'इस विरद को स्मरण कर कहते-कहते श्रीहनुमानन के नेत्रों में आँसू भर आये |
अतः 'हमारा 'शब्द का भाव यः है कि कुल तो हमारा ऐसा नीच है कि 'वानर' शब्द का ही सबेरे मुँह से निकालना अच्छा नहीं माना जाता ,परन्तु उसी योनि में उत्पन्न मैं जब प्रभु का कृपा पात्र बना लिया गया ,तब तो --

'राम कीन्हि आपन जबही तें | भयउँ भुवन भूषन तबही तें ||'
मेरे हनुमान ,महावीर ,बजरङ्गी ,पवनकुमार आदि नाम प्रातः स्मरणीय हो गये |
इसका प्रमाण इस प्रकार है --
'असुभ होइ जिन्ह के सुमिरन तें बानर रीछ बिकारी|
बेद बिदित पावन किए ते सब महिमा नाथ तिहारी ||'(विनय पत्रिका पद ११६ )

अतएव श्रीरामायण के उपर्युक्त पदों से श्री हनुमान का नाम सबेरे जपने का निषेध कदापि सिद्ध नहीं होता है ,उसका तात्पर्य 'बानर 'शब्द से ही है जो कुल की न्यूनता का द्योतक है ,स्वयं श्री हनुमानजी की न्यूनता का नहीं |कहीं - कहीं लोग ऐसा तर्क करते हैं कि हनुमानजी रात्रि में जगने के कारण सबेरे सोते रहते हैं अथवा सबेरे श्रीराम की मुख्य सेवा में रहते हैं ,इसलिये सवा पहर वर्जित है ; सो न तो इसका कोई प्रमाण अभी तक इस दीन को मिला है , और न तो यह बात उचित मालूम होती है कि योगिराज ,ज्ञानियों में अग्रगण्य श्रीहनुमान पहरभर दिन चढने तक सोते रहते हैं ,अथवा उनका अन्तिम दिव्य विग्रह और अमोघ शक्ति वपु एक रूप से सरकारी सेवा में तत्पर रहते हुए दूसरे अनेक रुपों से अपने भक्तों की सेवा स्वीकार करने में असमर्थ रहता है | जहाँ प्रेम पूर्वक श्रीराम नाम का जप तथा श्रीरामायण का पाठ होता है वहाँ तो मारुति सदैव विराजमान रहते हैं -चाहे वह प्रातः काल हो या कोइ काल हो |फिर इस झगडे. में पड.कर तो श्री हनुमान के आराम विश्राम के लिए सवा पहर भगवद्भजन भी छोड.ना पडे.गा ,जिसका छूटना ही उसकी दृष्टि में विपत्तिजनक है -

'कह हनुमन्त बिपति प्रभु सोई | जब तव सुमिरन भजन न होई ||'
अतएव इस दीन के तुच्छ विचार से तो सवा पहर क्या ,एक क्षण भी भाग्यवानों को श्री हनुमत् -नाम- भजन और पाठादि से विमुख नहीं करना चाहिये |
प्रातः काल का समय तो भजन के लिये है ही |श्री मारुति सदा तथा सब काल में वन्दनीय हैं --

''प्रवनउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन |
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ||''
सियावर राम चन्द्र की जय !

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