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शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

गणेश वन्दना एवं पूजन विधि

ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय,श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
गणेश वन्दना एवं पूजन विधि 
गणेश चतुर्थी 
भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की चतुर्थी गणेश चतुर्थी के नाम से प्रसिद्ध  है। इस दिन स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर गणेश भगवान का पूजन अर्चन करना चाहिए । मोदक,लड्डू तथा हरे दूर्वा श्रद्धापूर्वक ईश्वर को अर्पित करने चाहिए  ।महाप्रभु के निम्नोक्त नामों का प्रतिदिन तीन बार पाठ करने से शुभकार्यों में कोई विघ्न नहीं आता । -
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् |
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुः कामार्थसिद्धये ||
प्रथमं वक्रतुण्डं च ,एकदन्तं द्वितीयकम् |
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षम् ,गजवक्त्रं चतुर्थकम् ||
लंबोदरं पञ्चमं च ,षष्ठं विकटमेव च |
सप्तमं विघ्नराजं च ,धूमवर्णं तथाष्टकम् ||
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्|
एकादशं गणपतिम्  ,द्वादशं तु गजाननम् ||
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्घ्यं यः पठेन्नरः |
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम् ||

 गणेश महामंत्र -ॐ गं गणपतये नमः ।
ॐ एकदन्तायविद्म्हे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।
ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
अर्थात टेढ़ी सूंड वाले ,विशालकाय शरीरवाले ,करोड़ों सूर्यों के प्रकाशतुल्य प्रकाशवाले गणेश भगवान् मेरे सभी कार्यों को विघ्नरहित करें ।

गजाननं भूतगणाधिसेवितम् ,कपित्थ-जम्बू-फल-चारु-भक्षणम् |
उमासुतं शोक-विनाश-कारकम् ,नमामि विघ्नेश्वर-पाद-पङ्कजम् ||
अर्थात भूतगणों के द्वारा सेवित ,कैथ और जामुन के फलों के सार को खाने वाले,(भक्तों के)शोक नाश का कारण बनाने वाले पार्वती के पुत्र ,विघ्नों के स्वामी गजानन के चरणकमलों को मैं नमस्कार करता हूँ ।
श्री गणेश भगवान् की कथा 
एक बार भगवान शङ्कर स्नान करने के लिए भोगवती नामक स्थान पर गए । उनके चले जाने के पश्चात पार्वती ने अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया । जिसका नाम उन्होंने गणेश रखा पार्वती ने गणेश को द्वार पर एक मुद्गल लेकर बैठाया और कहा कि जब तक मैं स्नान करूँ तब तक किसी भी पुरुष को अंदर मत आने देना ।
भोगवती पर स्नान करने के बाद जब भगवान् शङ्कर आये तो गणेश ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया । क्रुद्ध होकर भगवान् शङ्कर ने श्रीगणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और अंदर चले गए । पार्वती ने समझा की भोजन में विलम्ब होने के कारण शिव शङ्कर नाराज हैं । उन्होंने उसी समय दो थालियों में भोजन परोसकर शिव शङ्कर को बुलाया । शिव शंकर ने दो थाल देखकर पूछा -दूसरा किसके लिए है । पार्वतीजी बोली-दूसरा थाल पुत्र गणेश के लिए है ,जो बाहर पहरा दे रहा है । यह सुनकर शिवशङ्कर ने कहा , '' मैंने तो उसका सिर काट दिया । ''यह सुनकर पार्वती बहुत दुःखी हुई और पुत्र गणेश को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करने लगी । शिवशंकर ने तुरंत ही पैदा हुए हाथी के बच्चे का सिर बालक के धड़ से जोड़ दिया । तब पार्वती  ने प्रसन्नता पूर्वक  पति और पुत्र को भोजन कराकर स्वयं भोजन किया । यह घटना भाद्रपद शुक्ल`चतुर्थी को हुई थी इसी लिए इसका नाम गणेश चतुर्थी पड़ा ।
श्री गणेश चालीसा 
दोहा -एकदन्त शुभ गजवदन,विघ्न विनाशक नाम ।
श्री गणेश सिद्धि सदन , गणनायक सुखधाम ॥
मंगल मूर्ति महान श्री ,ऋद्धि सिद्धि दातार ।
सब देवन में आपको ,प्रथम पूज्य अधिकार ॥
चौपाई 
वक्रतुंड श्री सिद्धि विनायक । जय गणेश सुख सम्पति दायक ॥
गिरिजा नंदन सब गुण  सागर । भक्त जनों के भाग्य उजागर ॥
श्री गणेश गणपति सुखदाता । सम्पति ,सुत सौभाग्य प्रदाता  ॥
राम नाम में दृढ़ विश्वासा । श्रीमन नारायण प्रिय दासा ॥
मोदक प्रिय मूषक है वाहन । स्मरण मात्र सब विघ्न नशावन ॥
 लम्बोदर पीताम्बर    धारी । भाल त्रिपुन्ड्र सुशोभित भारी ॥
मुक्ता पुष्प माल गल शोभित । महाकाय भक्तन मन मोहित ॥
सुखकर्ता ,दुःखहर्ता देवा । सदा करे संतन जन सेवा ॥
शरणागत रक्षक गणनायक । भक्तजनों के सदा सहायक ॥
सकल शास्त्र सब विद्या ज्ञाता । धर्म प्रवक्ता जग विख्याता ॥
'महाभारत ' श्री व्यास बनाया । तब लेखन हित  तुम्हे बुलाया ॥
शुभ कार्यों में सब नर नारी । प्रथम वंदना करें तुम्हारी ॥
मिट जातीं बाधाएँ सारी  । तुम हो सकल सिद्धि अधिकारी ॥
श्री गणेश के जो गुण गावें । उनके कार्य सफल हो जावे ॥
जो श्रद्धा से करे प्रार्थना  । उनकी होती सिद्ध कामना ॥
श्री गणेश के जो गुण गाते ।वे जन सकल पदारथ पाते ॥
जय गणेश जय गणपति देवा । तीन लोक करते तब सेवा ॥
मास  भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी । श्री गणनायक प्रकट जयन्ती ॥
श्रद्धा से सब भक्त मनाते । दिव्यचरित महिमा यश गाते ॥
श्री गणेश निज भक्त सहायक । विघ्न विनाशक मंगल दायक ॥
रणथम्भोर दुर्ग गणनायक । महाराष्ट्र  के अष्ट विनायक ॥
वेद पुराण शास्त्र यश गावे । श्री गणेश सब  प्रथम मनावें॥
विघ्नेश्वर श्री सुरप्रिय स्वामी  ।भक्त करें जाया गान स्मरामि ॥
सर्वाभीष्ट सिद्धि फल दायक । मोदक प्रिया गणपति गणनायक ॥
भालचंद्र गजमुख सुखकारी । पहले पूजा होत  तुम्हारी ॥
भक्त जनों को शुभ वरदायक। श्री गणेश जय वरद विनायक॥
श्री गणेश महिमा अति भारी ।इससे परिचित सब नर नारी ॥
गणपति की महिमा सब गाते ।रिद्धि सिद्धि यश वैभव पाते ॥
संकट में जो गणपति ध्यावें । उनके सर्व कष्ट कट जावें ॥
ऋद्धि सिद्धि बुद्धि बल दायक ।सदा सर्वदा विजय प्रदायक ॥
वृन्दावन के सिद्धि विनायक । श्री गणेश गणपति गणनायक ॥
विघ्न विनाशक नाम तुम्हारा । करो सिद्ध सब कार्य हमारा ॥
सब पर कृपा सदा प्रभु करना । दुःख दारिद्र्य शोक सब हरना॥
श्री मंगल विग्रह सुखकारी ।विनय करो स्वीकार हमारी ॥
पत्र पुष्प फल जल लेकर मै । पूजा करे सदा हम घर में ॥
जो यह पठन करे सौ बारा  । उन पर गणपति कृपा अपारा ॥
एक पाठ भी जो नित करते । उनकी सब विपदाएँ हरते ॥
रोग शोक बंधन कट जाते । सुख सम्पति संतति यश पाते ॥
शुभ मंगल सुन्दर फल पावे । श्री गणेश चालीसा गावे ॥
सफल गजानन करे कामना । भक्त गदाधर रचित प्रार्थना॥
दोहा - श्री गणेश गणपति प्रभो ! गणनायक गणराज।
 करो सफल मम कामना ,विघ्नेश्वर महाराज ॥

श्री गणेश भगवान की आरती 
जय -गणेश  ,जय -गणेश , जय -गणेश  देवा।
माता जाकी पार्वती ,पिता महादेवा ॥ जय -गणेश  ......
पान-चढ़े ,फूल चढ़े और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें  सेवा ॥ जय -गणेश  ......
एक दन्त दयावन्त,चार भुजा धारी ।
मस्तक सिंदूर  सोहे। मूषक की सवारी ॥ जय -गणेश  .....
अंधन को आँख देत ,कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत , निर्धन को माया ॥ जय -गणेश  ....
सूर्य श्याम शरण आएं सफल कीजै सेवा॥ जय -गणेश। ..
दीनन की लाज राखो ,बंधु सुतवारी ।
कामना को पूर्ण करो ,जग बलिहारी ॥ जय -गणेश  ...
  जय -गणेश  ,जय -गणेश , जय -गणेश  देवा ॥
॥ बोलो गणेश भगवान की जय ॥
 ॥ चिंतामन गणेश की जय ॥