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सोमवार, 25 मई 2015

अभिज्ञानशाकुन्तलम्



अभिज्ञानशाकुन्तलम्
यह कालिदास की सर्वोत्कृष्ट रचना है । यह सात अङ्क का नाटक है इसमें हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त और महर्षि कण्व की पालिता धर्म -कन्या शकुन्तला की प्रणयगाथा निबद्ध है । महर्षि कण्व की अनुपस्थिति में उनके तपोवन में दुष्यंत और शकुन्तला का प्रथम मिलन होता है ,और वही मिलन ''गन्धर्व विवाह'' का रूप धारण कर लेता है । राजा दुष्यंत महर्षि कण्व के आगमन से पूर्व ही अपनी राजधानी को प्रस्थान करते समय अपनी प्रियतमा शकुन्तला को स्वनामांकित मुद्रिका देते हुए कहते हैं कि - यह मेरी याद दिलाएगी । इसी बीच अतिथि सत्कार में शकुन्तला की असावधानी दुर्वासा ऋषि के शाप का कारण बनती है । किन्तु उसकी दोनों सखियों को यह रहस्य पता है कि शापवश राजा शकुन्तला को देखकर तब तक नहीं  पहचान सकेगा , जब तक वह किसी ''अभिज्ञान ''का दर्शन ना कर ले । महर्षि कण्व आश्रम में लौट कर शकुन्तला के '' गन्धर्व विवाह '' का समाचार ज्ञात करके प्रसन्न हैं तथा उसे गर्भवती जानकार राजा के पास भेजना चाहते हैं । आश्रम से राजधानी जाते समय सखियाँ शकुन्तला को बताती हैं  की यदि राजा पहचानने से तुम्हें भूल करे तो उसे नामांकित मुद्रा दिखा देना । राजा शकुन्तला को शापवश नहीं पहचान पाता तो शकुन्तला उसको मुद्रिका दिखाना चाहती है किन्तु वह अँगूठी तो ''शक्रावतार ''में शची तीर्थ के जल को प्रणाम करते समय उसके हाथ से स्खलित हो चुकी थी । कुछ दिन बाद ही वह अँगूठी राजा के पास पहुँचती है ,तब वह सम्पूर्ण घटना का स्मरण करके शकुन्तला की खोज में जाते हैं । अंत में पुनर्मिलन के साथ नाटक समाप्त होता है ।
कालिदास ने अभिज्ञान - शाकुन्तल में महाभारत के ''शकुन्तलोपाख्यान ''के इतिवृत्त को अपनी नवनवोन्मेष शालिनी प्रतिभा से सरस एवं गरिमामय बनाकर प्रस्तुत किया है। चतुर्थ अङ्क में उनकी कला चरमोत्कर्ष पर
है -  ''काव्येषु नाटकं रम्यं ,तत्र रम्या शकुन्तला ।
तत्रापि चतुर्थोङ्कस्तत्र श्लोकचतुष्टयम् । । ''
और -
'' कालिदासस्य सर्वस्वमभिज्ञानशकुन्तलम् ॥''
''अभिज्ञानशाकुन्तल ''संस्कृत साहित्य का सर्वोत्कृष्ट नाटक है । इसके सात अंकों में दुष्यंत शकुन्तला के प्रेम ,वियोग और पुनर्मिलन का वर्णन है । इसका प्रधान रस संभोग(संयोग) श्रृंगार तथा विप्रलम्भ श्रृंगार है । करुण ,वीर ,अद्भुत ,हास्य ,भयानक ,और शान्त ये सहयोगी रस हैं । यह नाटक सुखान्त है इसमें वैदर्भी रीति का मुख्यतः प्रयोग हुआ है । इसके नायक दुष्यंत धीरोदात्त नायक हैं । दुष्यंत के व्यक्तित्व को सजीव बनाकर चित्रित किया है । दुष्यंत बलिष्ठ एवं पराक्रम शाली ,ललित कलाओं का मर्मज्ञ ,प्रकृति प्रेमी एवं कुशल चित्रकार है । उसमें मानवोचित दुर्बलताएं भी हैं ,किन्तु वह पुत्र वत्सल ,कवि ,कलाकोविद एवं कर्तव्य परायण राजा है ।
शकुन्तला निसर्ग कन्या है । पिता कण्व के प्रति उसके हृदय में असीम प्रेम है । कवि ने कण्व को वत्सल पिता एवं सद्गृहस्थ के रूप में चित्रित किया है ।
अभिज्ञानशाकुन्तल में कालिदास ने प्रेम और सौंदर्य का सुन्दर सामंजस्य प्रस्तुत किया है । उन्होंने केवल मानव सौंदर्य का ही वर्णन नहीं किया है ,वरन प्राकृतिक सौंदर्य के चित्रों का भी अत्यंत भव्य एवं मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया है ।
महाकवि कालिदास ने अपने नाटकों में तत्कालीन समाज का चित्रण यथास्थान किया है । उस युग के सामाजिक ,सांस्कृतिक , राजनैतिक,धार्मिक एवं पारिवारिक जीवन का यथार्थ चित्रण अभिज्ञानशाकुन्तल में मिलता है ।
कालिदास की लोकप्रियता का कारण उनकी सरल ,परिष्कृत और प्रसाद गुण पूर्ण शैली है कालिदास में कल्पना की ऊँची उड़ान है ,भावों में गम्भीरता है । विचारों में जीवन की घनी अनुभूति है ,भाषा में लोच और प्रांजलता है । उनकी कविता में मादकता है ,घटना संयोजन सुविचारित है । बाह्य एवं अन्तः प्रकृति का  सूक्ष्म विश्लेषण हुआ है । चरित्र चित्रण में वैयत्तिकता को प्रधानता दी गई है, वर्णनों में अलंकारों की प्रधानता न होकर प्राकृतिक सुषमा की प्रमुखता है । उनकी भाषा में ध्वन्यात्मकता और प्रवाह है । उनका शब्द कोष अगाध है । उनकी उपमाएं बेजोड़ होती हैं इसीलिए उनके विषय में ''उपमा कालिदासस्य''यह कथन सुविश्रुत है । उन्होंने स्वाभाविक रूप से उपमा ,रूपक ,स्वभावोक्ति ,निदर्शना,दीपक ,विभावना ,व्यतिरेक ,अर्थान्तरन्यास ,अनुप्रास ,यमक ,श्लेष ,उत्प्रेक्षा ,आदि अलंकारों का प्रयोग किया है । इसी प्रकार विविध प्रकार के छन्दों का प्रयोग करने में कालिदास सिद्ध हस्त हैं । उनकी रचनाओं में आर्या ,अनुष्टुप ,वंशस्थ ,,वसन्ततिलका ,मालिनी ,मन्दाक्रान्ता ,शिखरिणी ,शार्दूलविक्रीड़ित आदि छन्द पाठकों का मन अपनी ओर आकर्षित कर उन्हें भाव विभोर करते रहते हैं ।
कालिदास सर्वतोमुखी प्रतिभासम्पन्न महाकवि एवं नाटककार हैं । वे साहित्य प्रकाश के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं । उनकी रचनाओं में स्वर्गीय आनन्द ,भौतिक विलास ,दैवी दिव्यता ,मानवीय मनोज्ञता और सात्विक सम्मोहन एक साथ सुलभ होकर निदर्शित है ।


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