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शनिवार, 30 अगस्त 2014

श्रीमद्भगवद्गीता - अथ प्रथमोऽध्यायः (१२-१९ )

१२-१९ दोनों सेनाओं की शङ्ख ध्वनि का कथन | 
तस्य सञ्जनयन्  हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः |
सिंहनादं विनद्द्योच्चैः शङ्खंदध्मौ प्रतापवान् ||
अर्थ  -कौरवों में वृद्ध बडे. प्रतापी पितामह भीष्म ने उस
दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न  हुएउच्च स्वर से सिंह की दहाड. के
समान गरजकर शंख बजाया ||१२||

ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः |
 सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ||
इसके पश्चात् शङ्ख और नगारे तथा ढोल मृदङ्ग और
नरसिङ्घे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे |उनका वह शब्द
 बडा भयंकर हुआ ||१३||

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ |
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः ||

अर्थ -इसके अनन्तर सफेद घोडों से युक्त उत्तम रथ में बैठे
 हुए श्री कृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी शङ्ख बजाये ||१४||

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः |
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ||

श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य नामक ,अर्जुन ने देवदत्त नामक और
भयानक कर्म वाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशन्ख बजाया ||१५||

  अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः |
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ||

अर्थ -कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा
 सहदेव ने सुघोष और मनिपुष्पक नामक शङ्ख बजाय ||१६||

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी  महारथः |
धृष्टद्द्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ||
दुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवी |
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक् -पृथक् ||

श्रेष्ठ धनुषवाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्द्युम्न
तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि ,राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पांचों
 पुत्र और बडी भुजा वाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु - इन सभी ने ,हे राजन् !
सब ओर् से अलग -अलग शंख बजाये ||१७-१८||

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् |
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन् ||

और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथिवी को भी गुंजाते हुए धार्तराष्ट्रों
 के अर्थात् आपके पक्षवालों के हृदय विदीर्ण कर दिये ||१९||

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