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शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

श्रीमद्भगवद्गीता - अर्जुनविषाद ,अथप्रथमोऽध्यायः (१-११)

श्रीमद्भगवद्गीता

 







अथप्रथमोऽध्यायः
 १-११  दोनों सेनाओं के प्रधान-प्रधान शूरवीरों की गणनाऔर सामर्थ्य का कथन |

धृतराष्ट्रउवाच  -

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे  समवेता युयुत्सवः |
मामकाः पाण्डवाश्चैव किम कुर्वत सञ्जय ||

 अर्थ  - धृतराष्ट्र बोले -हे संजय !धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित ,युद्ध की
 इच्छा वाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या  किया? ||१||

सञ्जय उवाच-
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत् ||

 अर्थ  - संजय बोले-उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की
 सेना को देखकर और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा ||२||

 पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीम् चमूम् |
 व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ||

 अर्थ  - हे आचार्य-आपके बुद्धिमान्  शिष्य द्रुपदपुत्र ध्रुष्टद्द्युम्न द्वारा
व्यूहाकार खङी की हुई पाण्डु पुत्रों की इस भारी सेना को देखिये ||३||

अत्र शूर महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि |
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ||

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् |
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः ||

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् |
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व  एव महारथाः ||

 अर्थ  - इस सेना में बङे-बङे धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद , धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज ,पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य ,पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान् उत्तमौजा,सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र-ये सभी महारथी हैं ||४-५-६||

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम |
नायका मम सैन्यस्य संञ्ज्ञार्थं तान् ब्रवीमि ते ||

 अर्थ  - हे ब्राह्मण श्रेष्ठ ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं उनको आप समझ लीजिये |आपकी जनकारी के लिये मेरी सेना के जो - जो सेनापति हैं ,उनको बतलाता हूं ||७||

भवान् भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः |
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ||

 अर्थ  - आप द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी
कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा,विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा ||८||

अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः |
नाना शस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ||

 अर्थ  - और भी मेरे लिये जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत - से शूरवीर अनेक
प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित और सब-के-सब- युद्ध में चतुर हैं ||९||

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् |
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ||

 अर्थ  - भीष्मपितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और
 भीम द्वारा रक्षिता इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है ||१०||

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः |
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ||

 अर्थ  - इसलिये सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग
सभी निःसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें ||११||

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