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गुरुवार, 6 नवंबर 2014

श्रीमद्भगवद्गीता , अथतृतीयोऽध्यायः (३६-४३)

३६-४३ काम के निरोध का विषय |

अर्जुन उवाच
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः |
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ||

अर्थ -अर्जुन बोले -हे कृष्ण ! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात् लगाये हुए की भांति
किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है ?||३६||

श्रीभगवानुवाच
काम एष क्रोध एष रजोगुण समुद्भवः |
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ||

अर्थ - श्रीभगवान् बोले - रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है , यह बहुत खाने वाला अर्थात्
भोगों से कभी न अघाने वाला और बडा पापी है , इसको ही तू इस विषय में वैरी जान ||३७||

धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च |
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ||

अर्थ- जिस प्रकार धूँए से अग्नि और मैल से दर्पण ढका जाता है तथा जिस प्रकार जेर से गर्भ ढका
रहता है ,वैसे ही उस काम के द्वारा यह ज्ञान ढका रहता है ||३८||

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा |
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ||

अर्थ -और हे अर्जुन !इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले कामरूप ज्ञानियों के नित्य वैरी के
द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढका हुआ है ||३९||

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते |
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ||

अर्थ -इन्द्रियां ,मन और बुद्धि - ये सब इसके वासस्थान कहे जाते हैं | यह काम इन मन ,बुद्धि और 
इन्द्रियों के द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है ||४०||

तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ |
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ||

अर्थ - इसलिये हे अर्जुन !तू पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने 
वाले महान पापी काम को अवश्य ही बल पूर्वक मार डाल ||४१||

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः |
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ||

अर्थ - इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानी श्रेष्ठ , बलवान और सूक्ष्म कहते हैं ;इन इन्द्रियों से 
पर मन है , मन से भी पर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यन्त पर है वह आत्मा है ||४२||

एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना |
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ||

अर्थ -इस प्रकार बुद्धि से पर अर्थात सूक्ष्म , बलवान और अत्यन्त श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और
बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके हे महाबाहो ! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल ||४३||
             ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां
                         योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो
                                    नमः तृतीयोऽध्यायः||३|| 

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