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शनिवार, 5 सितंबर 2015

शिक्षक और शिक्षार्थी

विश्वशिक्षाविदों के अनुसार बच्चों में पनपने वाली कुण्ठा का यह एक प्रमुख कारण है जिसके  परिणामस्वरूप  व्यक्ति  अपराध की ओर बढ़ने लगता है ।शिक्षा शब्द का उच्चारण होते ही इसके दो परिपार्श्व अर्थात दो समानांतर सन्दर्भ तुरंत ही सामने आ जाते हैं । एक है शिक्षक और दुसरा है शिक्षार्थी ।दोनों ही भगवान के स्वरूप हैं और दोनों को दोनों के रूपों का यथार्थ बोध हुए बिना शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त नहीं होगा ।

शिक्षा कैसी हो ?समस्त संसार में जब भी इस विषय पर विचार -विमर्श होता है तब सभी यही सोचते हैं की शिक्षा ऐसी हो जिसके माध्यम से मनुष्य प्रकृति और अपने साथियों के साथ अत्यधिक निकट सम्बन्ध स्थापित कर सके ,पेड़ - पौधे तथा उन सभी वस्तुओं के प्रति अधिक व्यापक दृष्टिकोण बना सके ,जो इस संसार को रहने के योग्य बनाता है । हमारी परम्पराओं की जो बातें ऐसा दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक हैं  उन्हें निःसंदेह ही हमें अपनानी चाहिए साथ ही नया ज्ञान प्राप्त करना दायित्त्व  है।

हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली अनुपयोगी हो गई है।यह प्रणाली मुख्यतया पश्चिम से अनुप्राणित है।यह व्यक्ति विशेष के विकास पर बल देते हुए केवल उपाधि पाने का अथवा रोजगार के लिए अन्य शर्तों को पूरा करने का माध्यम मात्र रह गई है। परन्तु वर्त्तमान शिक्षा पद्धति की भी हम निंदा नहीं कर सकते क्योंकि अपनी इन सीमाओं के बावजूद भी इसने अनेक वैज्ञानिक शिक्षाविद् एवं बड़ी 2 संख्या में होनहार व्यक्तियों का निर्माण किया है। वर्तमान शिक्षा पद्धति मैं प्रकार के परिवर्तनों की आवश्यकता है जोसभी की आवश्यकताओं को पूरा  कर सके । शिक्षा को हमारी सामाजिक जीवन पद्धति के अनुरूप बनाया जाना चाहिए। पाठ ऐसे हों जो जीवन और परिस्थितियों से सम्बंधित हो जिससे छात्रों में प्रेरणा का उदय हो कि वो जीवन भर दूसरों से सिखाते रहें।

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